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स्वतंत्रता का बदलता अर्थ

स्वतंत्रता ऐसा शब्द है

जो भर देता है सबमें जान ,

स्वतंत्रता पाने के लिए

कितने वीरों ने दिया अपना बलिदान ।

पशु , पक्षी अथवा मनुष्य स्वतंत्रता हर किसी को प्यारी होती है। स्वतंत्रता दिवस पर हम उन वीरों को भी याद करते हैं, जिन्होंने अपना सर्वस्व इस देश पर लुटा दिया। परंतु जैसे-जैसे समय बदल  रहा है, विचार बदल रहे हैं तथा स्वतंत्रता का अर्थ बदलता जा रहा है। स्वतंत्रता मिलते ही हर नागरिक को अधिकार प्राप्त हुए। जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह अधिकारों के साथ कर्तव्यों ने भी जन्म लिया। अधिकतर लोगों ने अधिकारों से तो प्यार किया परंतु कर्तव्यों के प्रति उनका रुझान फीका रहा। 

अधिकारों में यह तो याद रखा कि अपने अधिकारों के लिए कैसे आवाज़ उठाई जाए, परंतु यह क्यों भूल गए कि यह हमारा कर्तव्य भी है कि जो अधिकारों के लिए आवाज़ उठती है, वह आवाज़ दबाई ना जाए। 

स्वतंत्रता बहुत अच्छी लगती है लेकिन स्वतंत्रता का नाजायज़ फायदा उठाना कहां तक जायज़ है? हर धर्म को मानने की स्वतंत्रता मिली। देखा जाए तो यह हमारा कर्तव्य भी है कि हम हर धर्म का सम्मान करें। यदि हमें शिक्षा का अधिकार है तो क्या हमारा  यह कर्तव्य नहीं है कि उस शिक्षा के द्वारा हम अपने देश की प्रगति के बारे में सोचें? लेकिन आज का नागरिक सिर्फ अपनी ही प्रगति के बारे में सोच रहा है। उसकी नज़र में देश की प्रगति और अपनी प्रगति अलग है। जिस दिन हर नागरिक देश की प्रगति के लिए कार्य करने लगेगा उस दिन हमारा देश सच में प्रगति के पथ पर चल पड़ेगा। परंतु यह प्रगति कुछ नागरिकों के सोचने से नहीं होगी बल्कि हर नागरिक के मन में यह जज्बा होना ज़रूरी है। स्वतंत्रता का सही मायने में अर्थ है देश के लिए जज़्बाती होना। सिर्फ स्वयं आगे ना बढ़ कर, कंधे से कंधा मिलाकर सबके साथ आगे बढ़ना ही प्रगति है।

सुनीता
हिन्दी अध्यापिका

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